इंदिरा गांधी की मौत: कुछ अनसुलझे सवाल

 


◆   इंदिरा गांधी― कुछ अनसुलझे सवाल



इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) भारत की एक महान राजनेत्री थीं। वह पहली बार 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वह भारत की इतिहास में एक सशक्त महिला नेता के रूप में जानी जाती हैं।


इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर, 1917 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। उनके पिता जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री थे।


इंदिरा गांधी 19 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के अल्लाहाबाद में जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की बेटी के रूप में जन्मी थीं। वह शिक्षित और सुसंस्कृत परिवार से थीं और उन्हें शिक्षा का बढ़िया स्तर मिला था।


इंदिरा गांधी ने बचपन में ही राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने परिवार के साथ भाग लिया था। वह भारत की स्वतंत्रता के बाद भी राजनीति में अपनी अहम भूमिका निभाती रहीं।


इंदिरा गांधी ने विभिन्न विषयों पर विस्तृत जानकारी रखती थीं, जिसमें समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, विदेश नीति, और राजनीतिक विज्ञान शामिल थे। वह दुनिया भर में अनेक अद्भुत व्यक्तित्वों में से एक थीं।




◆  आयरन लेडी― इंदिरा 


इंदिरा गांधी को "आयरन लेडी" कहा जाता है क्योंकि वह अपने सख्त नेतृत्व और निर्णायक फैसलों के लिए जानी जाती थी। उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत, स्थायित्व और निरंतर अभियोजन के लिए प्रसिद्ध हुई थीं। उन्होंने अपने नेतृत्व के दौरान विभिन्न विवादित मुद्दों पर अपनी निर्णायकता दिखाई, जैसे ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान, जिसने सिख समुदाय में आंदोलन फैलाने के बाद शुरू हुआ था। उन्होंने इंडिया को अपनी अन्तर्राष्ट्रीय स्थान की मजबूत तलवार बनाने में भी मदद की थी, जिसमें वह अपनी पूर्व विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में काम करती थी।




इंदिरा गांधी के कार्यकाल में उन्होंने कई महत्पूर्ण फैसले लिए जो भारत के विकास और सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहे। कुछ महत्पूर्ण फैसलों की सूची निम्नलिखित है:


  • बैंकीकरण― इंदिरा गांधी ने नेशनलाइजेशन के माध्यम से भारत के बैंकों का संचालन करने का फैसला लिया।


  • परमाणु ऊर्जा भारत के पहले परमाणु ऊर्जा केंद्र का निर्माण इंदिरा गांधी के काल में हुआ था।


  • ग्रामीण विकास इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय ग्रामीण विकास योजना को शुरू किया जिसके माध्यम से गांवों के विकास को सुनिश्चित किया गया।


  • सेना विकास इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को ताकतवर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर विकास कार्यों को शुरू किया जैसे कि तांडव, आर्जन, प्रथम अभ्यास, और प्रहरी इत्यादि।


  • विदेशी नीति इंदिरा गांधी ने भारत की विदेश नीति को स्वतंत्र विदेश नीति के रूप में बदलने का फैसला लिया जिससे भारत अपने स्वतंत्रता को अछुन्न बनाये रखने की ओर अग्रसर हुआ।



इंदिरा गांधी ने अपनी प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने भारत में गरीबी और उपेक्षा के खिलाफ लड़ाई लड़ी, पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ा और बांग्लादेश के गठन को समर्थन दिया। उन्होंने भारत की नौसैना और वायुसेना को विकसित किया और विदेशी नीतियों को संभाला। उन्होंने स्वदेशी आंदोलन को भी समर्थन दिया और देश के विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों की विकास योजनाओं को प्रोत्साहित किया।



इंदिरा गांधी भारत की इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण नेता थीं जिनके कार्यकाल में वे कई महत्वपूर्ण उपलब्धियों को हासिल करने में सफल रहीं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां निम्नलिखित हैं:


  • गरीबी उन्मूलन की योजनाएं―इंदिरा गांधी ने गरीबी उन्मूलन की योजनाओं का आरंभ किया, जिसमें वह दलितों, गरीबों, विधवाओं, अनाथों और पिछड़ों के लिए भीड़ और आर्थिक सुविधाओं के साथ घर बनाने की सुविधा उपलब्ध करवाई थीं।


  • सशक्तिकरण―उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई योजनाओं का आरंभ किया जो महिलाओं को अपनी अर्थव्यवस्था में शामिल करने में मदद करती थीं।


  • प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास― इंदिरा गांधी के कार्यकाल में भारत में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़ी उन्नति हुई। वह एक बहुत बड़े उद्योग के विकास के लिए प्रोत्साहित करती थीं।




★ कुछ अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धियों में शामिल हैं:―


  • बंगाल विभाजन के बाद देश में संघर्ष और अस्थिरता बढ़ी थी। इस स्थिति में उन्होंने देश को एकता और स्थिरता की दिशा में ले जाने के लिए कई कदम उठाए।


  • उन्होंने वृद्धावस्था, नारी हितों, बाल विकास, कृषि विकास, उद्योग विकास और शिक्षा के क्षेत्र में कई सुधार किए।


  • उन्होंने न्यायालयों को स्वतंत्र रखने के लिए एक अध्यादेश जारी किया।


  • उन्होंने भारतीय नौसेना को मजबूत बनाने के लिए बहुत कुछ किया जिसके कारण भारत एक शक्तिशाली नावी शक्ति बन गया।





◆ आपातकाल और इंदिरा गांधी 


1975 में भारत की स्थिति बहुत अस्थिर थी। अर्थव्यवस्था में संकट था, लोगों में असन्तोष था, और अन्य बहुत सी समस्याएं थीं। इस दौरान, इंदिरा गांधी सरकार को संचालित कर रही थीं।


1975 में, इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा एक आपातकाल लगाया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य था कि सरकार को नियंत्रित किया जाए और देश में शांति और विकास के लिए एक स्थिर माहौल बनाया जाए। आपातकाल के दौरान, स्वतंत्रता के अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाए गए थे, नेताओं और विरोधियों को गिरफ्तार किया गया था और न्याय प्रणाली को अस्थाई रूप से समाप्त किया गया था।


इस आपातकाल का फलस्वरूप, इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ विरोध बढ़ गया था। जब आपातकाल समाप्त हो गया तो विपक्ष इंदिरा गांधी के खिलाफ सशंक जताने लगा और इससे वह 1980 में हुई चुनावों में हार गई।





◆ इंदिरा गांधी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण वाद:― 


  • राजन गंड्वाली केस (1975):― यह मुद्दा आपातकाल के दौरान संबंधित था जब इंदिरा गांधी के प्रतिद्वंद्वी राजन गंड्वाली को गिरफ्तार करवाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने राजन गंड्वाली के गिरफ्तारी को अवैध ठहराया और इससे पहले आपातकाल घोषित किया गया था।


  • केस बनाम गाँधी:― 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाने के बाद उनके खिलाफ यह मामला सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया था। 1977 में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि आपातकाल लगाने का निर्णय गलत था और वे फिर से चुनाव कराने के लिए वापस आएं।


  • हर्षद मेहता केस:― यह मामला इंदिरा गांधी द्वारा बनाए गए अंतरिम बजट के खिलाफ था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि यह अंतरिम बजट असंवैधानिक था।


  • कैम्बेल मेहता केस:― 1971 में इंदिरा गांधी के द्वारा लागू किए गए कुछ विधेयकों के खिलाफ यह मामला सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि इन विधेयकों को असंवैधानिक करार दिया जाना चाहिए।


  • हेमलता कात्याल केस (1979):― इस मुद्दे में हेमलता कात्याल की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी के उपचुनाव में चुनाव प्रक्रिया को वैध माना।


  • राम जेठमलानी केस (1980):― इस मुद्दे में राम जेठमलानी की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव लड़ने से पहले उनके खिलाफ जारी एक आपराधिक मुद्दा के कारण चुनाव रद्द करने का निर्णय दिया।



★ इंद्रा गांधी बनाम राज नारायण वाद


इंद्रा गांधी बनाम राज नारायण केस, जिसे आमतौर पर " जेपी संगठन केस " के नाम से जाना जाता है, एक मुख्य न्यायिक मामला था जो भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस मामले में इंदिरा गांधी ने राजनीतिक विरोधियों की खिलाफ उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने का प्रयास किया था।


यह मामला 1975 में हुआ था, जब इंदिरा गांधी की सरकार ने आपातकाल लागू किया था। राज नारायण, एक विपक्षी नेता और जेपी संगठन के संस्थापक, इंदिरा गांधी के विरोध में थे और उन्होंने उनके खिलाफ विरोध जारी रखा। इस मामले में राज नारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।


इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अंततः इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया था और उन्हें उनकी सभी सांसद और विधायिका पदों से हटा दिया गया था। 






ऑपरेशन ब्लू स्टार


ऑपरेशन ब्लू स्टार भारत में सिख धर्म के संबंधित समस्याओं के चलते 1984 में आयोजित एक सैन्य अभियान था। इस ऑपरेशन का मुख्य उद्देश्य सिख धर्म के नेताओं के हत्यारे भाग को गिरफ्तार करना था जो उन्होंने सिख धर्म के मंदिर हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) में अपने अंदर छिपाए थे।


इस ऑपरेशन में भारतीय सेना की कुल तीन डिवीजनें शामिल थीं। इस ऑपरेशन के दौरान, सेना ने दिल्ली के सिखों के खिलाफ भी हिंसा का सामना करना पड़ा, जो इसके बाद तेजी से फैल गई थी। इस हिंसा में लगभग 400 से अधिक सिखों की मौत हुई थी और बहुत से उनके घरों और व्यापारों को नुकसान पहुंचा था।


यह ऑपरेशन बाद में काफी विवादित और उग्र हुआ था, क्योंकि इसमें सिख समुदाय के खिलाफ अत्याचार का आरोप लगाया गया था। इस ऑपरेशन के बाद, सिख समुदाय के अलगाव के मुद्दे पर बातचीत हुई और एक नया सिख राज्य पंजाब में स्थापित किया गया था।





◆ इंदिरा की मौत― कुछ अनसुलझे सवाल


इंदिरा गांधी की मौत 31 अक्टूबर 1984 को नई दिल्ली में हुई थी। उन्हें दिल्ली में अपने राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व में चल रहे एक विवादित संग्रहण के विरोध में एक सुरक्षा कार्यक्रम के दौरान गोलियों से घायल कर दिया गया था। उन्हें दिल्ली के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया था। उनकी स्थिति बहुत गंभीर थी और दिसंबर 1984 तक उन्हें नई दिल्ली के राजकीय अस्पताल में रखा गया था, जहां उनकी मृत्यु हो गई।



    ― इंदिरा गांधी की मौत की प्रमुख वजह 31 अक्टूबर 1984 को उनके द्वारा स्वीकृत एक बड़े आर्थिक नीति को लेकर सिख धर्मांतरण आंदोलन के दौरान होने वाले दंगों में उनकी हत्या हुई थी। यह दंगे उन लोगों के विरोध के बीच हुए थे जो भारत सरकार के फैसले से असंतुष्ट थे कि उन्हें अपने मंदिरों के सुरक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा नियमित रूप से दिया जाने वाला सुरक्षा खत्म कर दिया जाए।



इंदिरा गांधी की हत्या को दो जगहों से देखा जाता है― एक तो वहाँ से जहां से गोलियों की फायरिंग हुई थी और दूसरा वहाँ से जहाँ से इस हमले के पीछे की सच्चाई छुपी थी।


आधिकारिक तौर पर, इंदिरा गांधी को दिल्ली के राजीव गांधी नामक स्थान पर उनके सुरक्षा कार्यक्रम के दौरान लगातार गोलियों से घायल किया गया था। उन्हें नई दिल्ली के राजकीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां उनकी मृत्यु हो गई।


हालांकि, दूसरी ओर, कई लोगों के द्वारा इस हमले के पीछे सिख आंदोलन के दबाव के अलावा भी कुछ और कारण बताए जाते हैं।


इंदिरा सरकार के विरुद्ध चलने वाले सिख आंदोलन का मुख्य कारण था भारत में सिख समुदाय के अलगाव के विरोध में इस्लामिक देश पाकिस्तान के समीप स्थित सिख राज्य कल्तक हांगोंग से प्रेरित होना।


यह आंदोलन जुलाई 1982 में सिख संगठन अखिल भारतीय अखाड़ा प्रबंधक समिति (AISSF) की स्थापना के बाद शुरू हुआ था। AISSF इस आंदोलन को संचालित करने के लिए एक समूह का गठन किया था, जो सिख धर्म के मामलों में अधिक अधिकार और स्वतंत्रता की मांग कर रहा था।


इस आंदोलन के दौरान, सिख समुदाय के कुछ नेताओं ने हिंदू और सिख धर्म के बीच भेदभाव के विरोध में समूचे देश में हिंसा फैलाने के आरोपों के बीच इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ अभियोग लगाए गए थे। यह आंदोलन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अधिक उग्र हो गया था जिसमें दिल्ली में सिखों के खिलाफ भी हिंसा हो गई थी।




इंदिरा गांधी के हत्यारों को सीधी जमानती मुआवजा नहीं मिली, बल्कि उन्हें उस समय देश के विश्वसनीयता और एकता को खतरे में डालने के आरोप में जेल में भेज दिया गया था।


इंदिरा गांधी को गोलियों से घायल करने वाले श्रीमती बंटी और बेबी सतविंदर कौर को स्वतंत्रता प्राप्त कर दिया गया था। इन दोनों महिलाओं को भारतीय राजनीति में संघर्ष करने वाली सिख आंदोलन से जुड़ा था जो उनके पुत्र भी नेतृत्व कर रहे थे।


सिख नेता जर्नैल सिंह भिंडरावाले और अमरदीप सिंह जीत के साथ एक दूसरे संगठन के नेताओं को गिरफ्तार किया गया था। दोनों को उस समय फांसी की सजा सुनाई गई थी।


इसके अलावा, एक सिख नेता बालबीर सिंह खालसा को भी उसी समय उसी मामले में गिरफ्तार किया गया था और उसे दो वर्षों तक जेल में रखा गया था।


जर्नैल सिंह भिंडरावाले और अमरदीप सिंह जीत की सजा दोबारा सुनाई गई थी, लेकिन इस बार उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी जो बदले में उनकी मृत्युदंड में संक्षिप्त की गई थी। दोनों को 1995 में फांसी की सजा दी गई।।




        





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