जनसंपर्क के माध्यम

 


जनसंपर्क के माध्यम या प्रमुख साधन


जन-संपर्क अथवा लोक-संपर्क का एक सीधा सा अर्थ है- " जनता के साथ सम्पर्क "। अगर यह संपर्क व्यक्तिगत रूप से प्रत्यक्ष हो तो बात कुछ ज्यादा प्रभावशाली बन जाती है। नए-नए वैज्ञानिक आविष्कारों से जन-सम्पर्क स्थापित करने के लिए, कई साधनों में दिनों-दिन बहुत वृद्धि हो रही है। अब जन-सम्पर्क के अनेक और बहुत ज्यादा शक्तिशाली साधन विकसित हो चुके हैं। आज जन-सम्पर्क को एक विशिष्ट कला बना दिया गया है। कई प्रकार के श्रव्य-दृश्य साधनों के प्रयोग के द्वारा इसे अधिक से अधिक सुलभ बना दिया गया है।



  जनसंपर्क के माध्यम


साधारणतया जनसम्पर्क स्थापित करने के लिए अनेक साधन प्रयोग में लाए जाते हैं। जनसंपर्क के कुछ मुख्य साधन इस प्रकार निम्नलिखित हैं :-


  • प्रकाशन
  • प्रेस-अखबार
  • प्रेस-कांफ्रेस
  • व्याख्यान तथा भाषण
  • रेडियो-टेलीविजन
  • पर्चे-हैण्डबिल
  • पुस्तिकाएं व अन्य प्रचार सामग्री
  • श्रव्य-दृश्य माध्यम
  • फोटोग्राफी
  • स्लाइड शो
  • प्रर्दशनी
  • मेले व अन्य सार्वजनिक उत्सव
  • विज्ञापन
  • फिल्म
  • टीवी तथा मोबाइल
  • सीडी-डीवीडी 
  • कंप्यूटर और इंटरनेट व
  • इलेक्ट्रानिक मीडिया के अन्य साधन।


                 ― उपरोक्त वर्णित जन-संचार व जन-सम्पर्क के कुछ महत्वपूर्ण साधनों का संक्षिप्त वर्णन निम्लिखत रूप में प्रस्तुत हैं:-


◆ प्रेस तथा प्रकाशन

        

― प्रेस तथा प्रकाशन जन-सम्पर्क करने के कई साधनों में सबसे सशक्त माने जाते हैं। सभी सरकार अपने कार्यक्रमों और योजनाओं का जनता में प्रचार-प्रसार करने के लिए पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करती है। सभी सरकार का अपना एक सूचना अथवा प्रकाशन विभाग होता है। यह विभाग जनता को सरकारी कार्यों की आवश्यक जानकारी देने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रकाशन यथा-पत्रिकाएं, पुस्तिकाएं, पैम्पलेट, निकालता रहता है। ये काफी सस्ते होते हैं। कुछ प्रकाशन-सामग्री बिल्कुल निशुल्क भी दी जाती है। निजी क्षेत्र व संस्थाएं भी जनसंपर्क के लिए प्रेस तथा प्रकाशन की मदद लेती हैं। निजी संस्थाएं अपनी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी करती हैं और अन्य प्रकाशनों के जरिए भी अपना पक्ष लोगों के सामने रखती हैं।।



◆ आकाशवाणी  तथा रेडियो


― आकाशवाणी जन-सम्पर्क करने का महत्वपूर्ण साधन है। आज भी यह सस्ता, सुलभ और विस्तृत प्रसार वाला जन सम्पर्कीय साधन माना जाता है। शिक्षित तथा अशिक्षित, अमीर तथा गरीब, बुद्धिजीवी तथा किसान सभी लोगो को इससे जानकारी प्रदान की जाती है। आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम भी जन-सम्पर्क के प्रमुख साधन हैं। आज निजी एफ०एम (FM) रेडियो भी जनसंपर्क का एक अच्छा साधन बन गया है।। 



◆ फिल्म तथा विडिओ


― फिल्मों का प्रयोग भी सरकार अपने प्रचार के साधन के रूप में करती है। किसी विशेष विषय की जानकारी या शिक्षा देने के लिए विभिन्न प्रकार के वृत्त-चित्र बनाए जाते हैं। गांव-गांव एवं मोहल्लों में सरकारी गाडि़यों से घूम-घूमकर भी ये फिल्म दिखाए जाते हैं तथा इसके द्वारा प्रचार के साथ-साथ मनोरंजक फिल्में भी दिखायी जाती हैं। हालांकि अब इलेक्ट्रानिक मीडिया के आने से यह प्रथा समाप्त होने लगी है।।



◆ दूरदर्शन और टेलीविज़न


― दूरदर्शन को आधुनिक युग की एक ऐसी देन के रूप में स्वीकार किया जाता है, जो जन-सम्पर्क का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन बन गया है। आकाशवाणी सिर्फ श्रव्य माध्यम है लेकिन दूरदर्शन में श्रव्य और दृश्य दोनों रूप साथ-साथ दिखाए जाते हैं और इसलिए विश्वसनीयता अधिक हो जाती है। निजी क्षेत्र और कारपोरेट घराने भी जनसंपर्क के लिए टेलीविजन की ताकत को पहचान चुके हैं इसलिए वे भी अब इस माध्यम को जनसंपर्क की पहली पसंद मानने लगे हैं।।



◆ इलेक्ट्राॅनिक मीडिया


समाचार देखने और सुनने के लिए अब किसी निर्धारित अवधि का इंतजार नहीं करना पड़ता। हर वक्त, हर समय पूरे विश्व का घटनाक्रम रिमोट के एक बटन पर उपलब्ध रहता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया ने निजी क्षेत्र के लिए भी जनसंपर्क आसान बना दिया है।।



  कंप्यूटर एवं इण्टरनेट


कंप्यूटर व इण्टरनेट ने आज जन-सम्पर्क के क्षेत्र में एक ऐसी क्रान्ति ला दी है, जो अकथनीय है। कंप्यूटर और इण्टरनेट के माध्यम से विस्तृत और व्यापक जानकारियां और सूचनाएं अब घर बैठे ही उपलब्ध होने लगीं हैं। बड़ी-बड़ी पोर्टल कम्पनियां, पुस्तकालय, समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, शैक्षणिक संस्थान, व्यावसायिक गतिविधियां और मनोरंजन व खेल से जुड़ी संस्थाओ द्वारा अब अपनी सारी सूचनाएं कम्प्यूटर मे उड़ेल दी गयीं हैं।।







 

◆ प्रदर्शनियां

                            

― जन सम्पर्क के लिए कई प्रकार की प्रदर्शनियों का भी सहारा लिया जाता है।  कार्य-कलापों से अवगत कराने के लिए समय-समय पर सार्वजनिक स्थलों और मेलों में प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया जाता है। इन प्रदर्शनियों मे सभी प्रकार की दृश्य सामग्रिया, फोटो-चार्ट, ग्राफ, रेखाचित्र, माॅडलयुक्त चित्र, नक्शों से कई विभागों या संस्थानों के कार्यों को दिखाया जाता है। इन प्रदर्शनियों में विभाग विशेष से सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारियां दी जाती हैं, पैम्पलेट बांटे जाते हैं तथा उपलब्धियों को जनता के सामने रखा जाता है।।


 


◆ व्याख्यान अथवा भाषण


व्याख्यान अथवा भाषण के द्वारा जन-सम्पर्क करना एक पुराना साधन है, जो आज भी बहुत प्रभावशाली माना जाता है। व्यख्यानों और भाषणों के माध्यम से भी जन-संपर्क किया जाता रहा हैं। नेता, समाजसेवी, समाज-सुधारक और क्रांतिकारियों के लिए जन-सम्पर्क का यह एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में सदैव रहा हैं और वर्तमान समय में भी इसकी उपयोगिता कम नहीं हुई हैं।।



◆ विज्ञापन


वर्तमान समय में विज्ञापन से बढ़कर दूसरा कोई जनसंपर्क का साधन है ही नहीं। परिवार कल्याण, अल्प बचत योजना, रेल सम्पत्ति की सुरक्षा, विद्युत बचत, टेलीफोन के दुरुपयोग को रोकना, अग्नि से सुरक्षा, बच्चो को रोग निरोधक टीका देने, गर्भ निरोधक उपाय अपनाने तथा समय पर कर जमा करने से सम्बन्धित अनेक विज्ञापन श्रव्य और दृश्य माध्यम के साथ-साथ प्रकाशन माध्यम से तैयार किए जाते हैं। इन्हें पत्र पत्रिकाओं, रेडियो, दूरदर्शन इत्यादि पर प्रसारित और प्रचारित किया जाता है।। 




  परम्परागत साधन


 परम्परागत  साधन से आशय इस तरह के साधन से है, जो हमारी परम्परा से जुड़े हुए हैं और जिनका प्रयोग हम पीढि़यों से करते चले आए हैं। आधुनिक मुद्रण और पत्र पत्रिकाओं का संचार माध्यमों के रूप में इतिहास पांच-छह सौ साल पुराना ही है। रेडियो, टीवी और अन्य इलैक्ट्रानिक संचार माध्यम तो और भी नए हैं। लेकिन परम्परागत जनसंचार माध्यम सदियों पुराने हैं।


भारत में लोक-गाथाएं, लोक-गीत, लोक-नृत्य, लोक-नाट्य, कठपुतली-खेल, खेल-तमाशा, स्वांग-नकल, जादू का प्रदर्शन, धार्मिक-प्रवचन आदि अनेक ऐसे लोक-माध्यम हैं, जिनका उपयोग जन-संचार के लिए किया जाता रहा है। 


लोक-माध्यम लोगों के दिलों-दिमाग पर अपनी छाप छोड़ते हैं इसलिए उनके जरिए दिया जाने वाला संदेश भी बेहद व्यक्तिगत और गहरा असर पैदा करता है। ये पारम्परिक संचार माध्यम ग्राम्य संस्कृति से जुड़े होते हैं और इनकी मौलिकता तथा विश्वसनीयता जबर्दस्त होती है।


                         ―  परम्परागत संचार माध्यमों की एक विशेषता यह भी है कि वे धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक जीवन के बेहद करीब होते हैं। एक तरह से कहें तो उसी से उपजे और बने होते हैं। इनकी विषयवस्तु जनसामान्य की परम्परा, रीति रिवाजों, समारोहों और उत्सवों से जुड़ी होती है। जनसामान्य के जीवन के दुःख-सुख इनमें प्रदर्शित होते हैं और इनकी प्रस्तुति में रोचकता तथा अपनापन होता है। अपनी भाषा में होने से भी इन्हें लोगों तक पहुंचने में आसानी होती है।।

         

Post a Comment

Previous Post Next Post