मानव सभ्यता के सर्वांगीण विकास में साहित्य का अतुलनीय योगदान रहा है। आधुनिक काल में भारतीय साहित्य (गद्य और पद्य) कई प्रयोगों-अनुप्रयोगों से समृद्ध हुआ।
1850 आधुनिक काल से हिंदी साहित्य के इस युग में कई बदलाव हुए। भारत में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता संग्राम का उदय हुआ। आजादी की लड़ाई लड़ी और जीती गई।
जन-संचार के विभिन्न साधनों का विकास हुआ। रेडियो, टी०वी व समाचार-पत्र हर घर का हिस्सा बने, छापेखाने का अविष्कार हुआ और शिक्षा हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार बना।
यातायात के साधन आम आदमी के जीवन का हिस्सा बने। इन सभी गतिविधियों और परिस्थितियों का प्रभाव हिंदी साहित्य पर भी पड़ा। इस आधुनिक काल में अनेक विचारधाराओं का प्रखर रूप से विकास हुआ।
― हिंदी काव्य में आधुनिक युग का प्रवर्तन " भारतेंदु हरिश्चंद्र " से माना जाता है। भारतेंदु का आना हिंदी कविता में एक युगांतर प्रस्तुत करता है। आधुनिक युग को साहित्यिक पुनरुत्थान, राष्ट्रीय चेतना परक काव्य परंपरा एवं आदर्श काव्य का युग कहा जा सकता है।
इससे पूर्व हिंदी में रीतिकालीन काव्य-धारा प्रवाहमान थी। " रीतिकाल काव्यधारा " की प्रमुख विशेषताएं सिंगार को प्रधानता, लक्षण ग्रंथों का निर्माण तथा अपने आश्रय-दाताओं को प्रसन्न करने के प्रयास इत्यादि थे। इस कविता का जनता के सुख-दुख से कोई संबंध नहीं था।
― 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने देश में एक नई चेतना उत्पन्न कर दी थी। अंग्रेजी सरकार के शासन और शिक्षा से छुटकारा पाने के लिए भारतवासियों ने प्रयास आरंभ कर दिए थे। जीवन में होने वाले परिवर्तन के साथ-साथ काव्य में भी परिवर्तन होने लगे थे। कविता रूपी सरिता पुरानी रूढ़ियों को तोड़कर स्वछंद रूप से बहने लगी थी।
संपूर्ण आधुनिक हिंदी काव्य-धारा को अध्ययन की सरलता हेत्तु 7 प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है:-
- भारतेंदु युग (1857 से 1900 तक)
- द्विवेदी युग (1900 से 1920 तक)
- छायावादी युग (1920 से 1936 तक)
- प्रगतिवादी युग (1936 से 1943 तक)
- प्रयोगवादी युग (1943 से 1950 तक)
- नई कविता ( 1950 से 1960 तक)
- साठोत्तरी कविता या समकालीन कविता (1960 से अबतक)
