◆ विनायक दामोदर वीर सावरकर
― वीर सावरकर एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रवादी विचारक, और कवि थे। वीर सावरकर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने विचारों और आंदोलनों के माध्यम से अहम योगदान दिया था। उन्होंने हिंदू महासभा की स्थापना की, जिसके माध्यम से अपनी विचारधारा का प्रचार किया और हिंदू एकता को संरक्षित करने के प्रयास किए। उनकी राष्ट्रवादी और धार्मिक विचारधारा ने उन्हें एक प्रमुख नेता बना दिया।
◆ पारिवारिक पृष्ठभूमि
― वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर रावजी सावरकर था और माता का नाम राधाबाई सावरकर था। वीर सावरकर एक पंडित परिवार से संबंधित थे और उनके परिवार में वैदिक संस्कृति, धार्मिकता और राष्ट्रीयता के महत्वपूर्ण मान्यताएं थीं।
सावरकर परिवार ने धर्म, संस्कृति और भारतीयता के प्रति गहरी आस्था रखी थी। उनके परिवार में संस्कृत भाषा, धर्मशास्त्र और भारतीय ऐतिहासिक और साहित्यिक ग्रंथों का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण था। वीर सावरकर ने अपने परिवार के प्रभाव में रहकर धार्मिक और राष्ट्रवादी भावनाओं को अपनाया।
उनके भाई गणेश वासुदेव सावरकर भी एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और आर्य समाज के सदस्य थे। सावरकर परिवार ने विभाजन के समय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया और वीर सावरकर ने अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से देशभक्ति की भावना को प्रचारित किया।
वीर सावरकर का विवाह यमुनाबाई चित्रपटरे के साथ हुआ था और उनके चार पुत्र और एक पुत्री थी। उनके पुत्र में विनायक, गणेश, भारत और दत्तात्रय थे। वीर सावरकर के परिवार के सदस्यों ने उनके साथ गंगाधर तिलक, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।
― वीर सावरकर की पारिवारिक पृष्ठभूमि उनके विचारों और देशभक्ति के प्रति उनकी प्रेरणा को समझने में मदद करते हैं।
◆ शैक्षणिक गतिविधि
― सावरकर की प्रारंभिक शिक्षा नसिक और पुणे में ही पूरी हुई, उन्होंने परमाणु भौतिकी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। बाद में अपने राजनीतिक गुरु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के परामर्श और सहयोग से श्यामजी कृष्णा वर्मा जी के संरक्षण में लंदन वकालत की पढ़ाई पूरी करने के लिए रवाना हुए।
लंदन में इंडिया हाउस (जो भारतीयों और क्रांतिकारियों के रहने का एक महत्वपूर्ण ठिकाना था) में उन्होंने शरण प्राप्त कर ली। यह इंडिया हाउस श्यामजी कृष्णा वर्मा जी का ही था। सावरकर ने जल्द ही अपने विचारों, प्रतिभा से श्यामजी का विश्वाश और सानिध्य प्राप्त कर लिया। बाद में इंडिया हाउस की देखरेख की ज़िम्मेदारी सावरकर के कंधों पर ही आ पड़ी।
◆ सावरकर और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन
― सावरकर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने प्रारंभिक समय में मित्र मंडली नामक संगठन बनाकर स्वदेशी आंदोलन का प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत की थी। बाद में 1904 में उन्होंने अपने बड़े भाई के संरक्षण और नेतृत्व में एक अन्य व्यापक क्रांतिकारी संगठन अभिनव भारत की स्थापना की। इस संगठन और इसके क्रांतिकारी सदस्यों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को गति प्रदान की।
सावरकर ने भारतीय राष्ट्रीय युवा संघ नामक संगठन की भी स्थापना की और हिंदू मातृभूमि के रक्षण के लिए संघ के सदस्यों को प्रशिक्षित किया। उनकी राष्ट्रीय सोच, जो विभाजन पर खरे उतरी, ने उन्हें हिंदू राष्ट्रवाद के प्रमुख नेता और प्रवक्ता के रूप में स्थापित किया।
सावरकर के कुछ महत्वपूर्ण कार्यों और योगदान को हम सार रूप में निम्नलिखिति रूप में व्यक्त कर सकते हैं:―
1. हिंदू महासभा की स्थापना:― वीर सावरकर ने 1906 में हिंदू महासभा की स्थापना की, जो एक राष्ट्रीय हिंदू संगठन के रूप में कार्य करती है। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य था हिंदू एकता को संरक्षित करना और हिंदू मस्तिष्क को जागृत करना।
2. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:― सावरकर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। वह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संगठित आंदोलनों का समर्थन करते थे और अपने लेखों, प्रवचनों और संगठन के माध्यम से देशभक्ति की भावना को प्रचारित किया।
3. क्रांतिकारी विचारधारा का प्रसार:― सावरकर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "1857: प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम" के जरिए लोगों की राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत किया। सावरकर ही वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सिपाही विद्रोह को स्वतंत्रता संग्राम बताया। यह पुस्तक उस समय क्रांतिकारियों के लिए "गीता" बन गयी थी।
4. वांदेमातरम् कविता का प्रसार:― सावरकर ने प्रसिद्ध कविता "वांदेमातरम्" का लोकभाषाओं में रूपांतरण किया, जो देशभक्ति और एकता की भावना को प्रकट करती थी। यह कविता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहुत प्रसिद्ध हुई और आज भी राष्ट्रीय गीत के रूप में प्रयोग होती है।
5. काला पानी की सजा:― सावरकर का अधिकांश जीवन कठोर सज़ा के रूप में जेल में ही व्यतीत हुआ। नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उन्हें आजीवन (50 वर्ष के) करावास की कठोर सजा मिली थी।
◆ सावरकर के विचारधारा
सावरकर आज जो कुछ भी हैं, वो अपनी अलग सोच और राष्टवादी विचारधारा की वजह से ही हैं। यह सच ही कहा गया हैं कि व्यक्ति की मृत्यु होती हैं, विचारधारा की नहीं। सावरकर ने अपने विचारों को अपने कार्यों के अलावा अपने महत्वपूर्ण पुस्तकों के माध्यम से अभिव्यक्त किया। अपनी सोच, विचार और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सावरकर ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की, जिनमें से कुछ प्रमुख पुस्तकें निम्नलिखित हैं:―
● 1857- प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम (The First War of Independence of 1857):― यह पुस्तक वीर सावरकर द्वारा लिखी गई है और इसमें उन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के विषय में अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।
● हिंदुत्व: विचार विमर्श (Hindutva: Vichar Vimrsh):― यह पुस्तक सावरकर का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध ग्रंथ है। इस पुस्तक में उन्होंने हिंदू राष्ट्रवाद के सिद्धांतों और आदर्शों को विस्तार से व्यक्त किया है।
● स्वातंत्र्यवीर सावरकर (Swatantryaveer Savarkar):― यह पुस्तक वीर सावरकर के जीवन और कार्य को समर्पित है। इसमें उनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, उनकी विचारधारा, और उनके सामाजिक और राष्ट्रीय कार्यों का वर्णन है।
● माझी जन्मठेप" (My Birthplace):― इस पुस्तक में सावरकर ने अपने जन्मस्थान महाराष्ट्र के नसिक के बारे में वर्णन किया है। उन्होंने अपने बचपन की यात्राओं तथा नासिक के संस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को प्रस्तुत किया है।
◆ सावरकर: वीर या विश्वासघाती
वीर सावरकर एक विवादास्पद व्यक्ति हैं क्योंकि उनके विचारों, कार्यक्षेत्र और संगठनीय संगठन को लेकर विभिन्न मतभेद हैं। इसके कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:―
● हिंदुत्व और राष्ट्रवाद:― वीर सावरकर को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के पक्षपाती माना जाता है। उन्होंने हिंदू धर्म को राष्ट्रीयता के साथ जोड़ा और अपनी पुस्तक "हिंदुत्व: विचार विमर्श" में इस विषय पर विचारों को व्यक्त किया। सावरकर के अनुसार हिन्दू भारतवर्ष के देशभक्त वासी हैं जो कि भारत को अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानते हैं। आसिन्धुसिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिकाः। पितृभूपुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितिस्मृतः ॥ (अर्थ : प्रत्येक व्यक्ति जो सिन्धु से समुद्र तक फैली भारतभूमि को साधिकार अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है।) इससे उनकी विचारधारा पर विपरीत मतभेद हुए हैं और इसे विवादास्पद माना गया है।
● स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी:― वीर सावरकर का स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी का संदर्भ भी बहुत चर्चा का विषय बना रहा है। कुछ लोग उनकी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को महत्वपूर्ण मानते हैं, जबकि दूसरों को उनके कुछ विचार और आपत्तिजनक बयानों ने उन्हें विवादास्पद व्यक्ति की श्रेणी में स्थापित किया हैं।
● पाकिस्तान के साथ समझौते:― वीर सावरकर को लगातार आरोप लगाए गए हैं कि उन्होंने पाकिस्तान के साथ समझौते किए थे और भारत के विभाजन को समर्थन किया था। यह भी एक विवादास्पद विषय है और उसकी सत्यता पर मतभेद हैं।
● वीर सावरकर के माफी का सच:― वीर सावरकर के माफी के संबंध में कोई आमतौर पर स्पष्ट सच्चाई उपलब्ध नहीं है। यह एक विवादास्पद मुद्दा है और इस पर विभिन्न धारणाएं रखी जाती हैं। कुछ लोग मानते हैं कि सावरकर ने माफी मांगी थी, जबकि कुछ लोग इसे असत्य और विपरीत मानते हैं।
वीर सावरकर ने अपने जीवनकाल में विभिन्न विचारों और कार्यों के माध्यम से विवाद पैदा किए हैं और इसके कारण उन्हें समाज में बहुत समर्थन और विरोध दोनों मिले हैं। उनके कुछ वादानुसार, उन्होंने आर्य समाज के सिद्धांतों को अपनाया और हिंदुत्व की प्रचार-प्रसार किया। इसके बावजूद, कुछ लोग सावरकर को एक विचारधारा के तहत आतंकवाद और अंधविश्वास के प्रचारक के रूप में देखते हैं।
सावरकर के माफी का मुद्दा उनकी गांधी की हत्या के बाद उठा था, जब कांग्रेस ने सावरकर के विरुद्ध आरोप उठाए थे। हालांकि, न्यायालय ने सावरकर को दोषी नहीं ठहराया था। इसके बावजूद, बाजार में अब तक इस मामले का निर्णय नहीं हुआ है और इसलिए इसे अभी भी विवादास्पद माना जाता है।
आपको यह ध्यान देना चाहिए कि वीर सावरकर के विचारों, व्यक्तित्व और कार्यों पर विचार विभाजन रहते हैं और उनके बारे में विभिन्न दृष्टिकोण और मत हो सकते हैं। इसलिए, इस प्रश्न का सटीक उत्तर नहीं दिया जा सकता है।
● अपराधिक मुद्दों का आरोप:― सावरकर को आरोप लगाए गए हैं कि उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या की साजिश की थी। यह एक विवादास्पद मुद्दा है और उसका न्यायिक परिषद में निर्णय नहीं हुआ है। इसके अलावा भी कुछ अन्य अपराधिक मुद्दों के संदर्भ में उन्हें घेरा गया है, लेकिन यह मुद्दा भी विवादास्पद है।
नोट:―
आपकी जानकारी के लिए यह सूचना देना महत्वपूर्ण है कि कोई ऐसी साक्ष्यात्मक प्रमाणित बात नहीं है जो वीर सावरकर को महात्मा गांधी की हत्या में सीधा संलग्न करती हो। इस बारे में कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है और यह एक विवादास्पद मुद्दा है।
वीर सावरकर ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया और उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। हालांकि, उनके विचारों को लेकर उनके विरोधी और पक्षपाती द्वारा बहुत संदेह और विवाद उठाए गए हैं। वीर सावरकर और महात्मा गांधी दोनों ने अपने अपने समय में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख रूप से योगदान दिया हैं, लेकिन उनकी विचारधाराएं और धार्मिक विचारों में भेदभाव था।
― इन सभी कारणों से वीर सावरकर विवादास्पद हैं और उनके बारे में भिन्न-भिन्न विचार हैं। इस परिस्थिति में, लोग उनकी विचारधारा और कार्यों को अपनी स्वतंत्र विचारधारा के संदर्भ में जांचते हैं और विवाद के बावजूद उनकी भूमिका का महत्व समझते हैं।
◆ सावरकर के प्रमुख कथन/उक्तियां
वीर सावरकर ने अपने जीवनकाल में कई प्रमुख कथन और उक्तियाँ कही हैं, जो उनकी सोच और दृष्टिकोण को प्रकट करती हैं। यहां उनकी कुछ प्रमुख कथन या उक्तियाँ निम्नलिखिति हैं:―
- महान उद्देश्य के लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहीं जाता।।
- हमारा धर्म है, हमारी संस्कृति है, हमारी भाषा है, हमारी धरती है। अगर इनकी सुरक्षा नहीं कर सकते तो अन्याय है।
- विचार करना और जीना दो अलग-अलग बातें नहीं हैं।
- दूसरों के प्रति समझदारी और न्याय से बर्ताव करना हमारे विचारों का परिचायक है।
- हमारे देश की धरती हमारी माता है और हमें उसका सम्मान करना चाहिए।
- भारतीय होने का अर्थ है अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम और समर्पण।
- भारतीय संस्कृति में शक्ति है, और उसी शक्ति से हमें स्वतंत्र होना है।
- वैश्विक दृष्टिकोण से भारतीय सोच को प्रकाशित करने की जरूरत है।
― ये कुछ उद्धरण हैं जो वीर सावरकर के विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने राष्ट्रीयता, धर्म, संस्कृति और भारतीयता के महत्व को महसूस कराने वाले उक्तियाँ कही हैं।
◆ सावरकर का देहावसान
सावरकर का निधन 26 फरवरी 1966 को मुंबई में हुआ था। हालांकि, उनके निधन का कारण आजतक नहीं पता चली है, लेकिन जानकारी के मुताबिक उनकी मृत्यु के पीछे मुख्य वजह उपवास थी, जो उन्होंने खुद चुना था।।
