◆ गांधी जी के विचारों पर पारिवारिक वातावरण का प्रभाव
किसी भी मनुष्य के विचारों के निर्माण में उसके रहन-सहन, भरण-पोषण और पारिवारिक माहौल का महत्वपूर्ण स्थान होता है। खुद गांधी जी ने इस तरह की बातें का उल्लेख करते हुए आत्मकथा में लिखा है कि बच्चे मां बाप से केवल रूप-रंग नहीं बल्कि उनके वंशगत गुण भी ग्रहण करते हैं। निश्चय ही किसी भी व्यक्ति के निर्माण में वातावरण का स्थान महत्वपूर्ण होता है। लेकिन बालक जिस मूल धारणा पर अपना जीवन प्रारंभ करता है वह उसे अपने पूर्वजों से ही प्राप्त होता है। निश्चित रूप से गांधीजी के विचार पर भी उनके माता-पिता, परिवार, समाज, आसपास के मान्यताओं तथा माहौल का ही सबसे ज्यादा प्रारंभिक असर पड़ा होगा।
लगभग सभी समाजशास्त्रियों का मत है कि प्रत्येक व्यक्ति के विचारों एवं आदर्शों के निर्माण में उसके पारिवारिक तथा सामाजिक वातावरण का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है। मानव-व्यक्तित्व के निर्माण एवं विकास के इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर विचार करने से ज्ञात होता है कि गांधीजी के नैतिक विचारों का निर्माण शैशव काल से उनके परिवार में ही आरंभ हो गया था। उनका जन्म एवं लालन-पालन एक ऐसे धर्म परायण वैष्णव परिवार में हुआ था, जो भौतिक सुविधाओं की अपेक्षा धार्मिक परंपराओं तथा आध्यात्मिक आदर्शों को अधिक महत्व देता था। उनके माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्य पूजा पाठ करना, मंदिरों में जाना और धार्मिक परंपराओं का पालन करना आवश्यक समझते थे। उनकी माता तो अत्यंत ही धर्मपरायण नारी थी और वे उपवास एवं व्रतों का दृढ़तापूर्वक पालन करती थी। इसके अतिरिक्त भगवान तथा देवी-देवताओं में उनकी अटूट श्रद्धा थी और बैष्णव मंदिर में नियमपूर्वक जाया करती थी। परिवार के इन धार्मिक विचारो का प्रभाव गांधी जी के विचारों पर बाल्यावस्था से ही गहरे रूप से पड़ा। इसी धार्मिक प्रभाव के कारण उनमें बाल्यावस्था से ही नम्रता, आज्ञाकारिता, विनय- शीलता, सेवा इत्यादि नैतिक गुणों का श्रीगणेश हुआ था और वे इनके अनुसार आचरण भी करने लगे थे।
वह बचपन में मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार एवं सत्य के लिए अपने सर्वस्व निछावर करने वाले सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र नामक नाटक देखा और बार-बार देखने की इच्छा शक्ति जगी थी, जिसका उनके हृदय पर बड़ा ही मार्मिक प्रभाव पड़ा था। इसके प्रभाव के कारण उसी समय माता-पिता व बड़ों की सेवा करने एवं सत्य और अहिंसा पर चलने की दृढ़ता उनके अंदर आ गयी थी।
गांधी जी ने सर्वप्रथम ईश्वर भक्ति का पाठ अपने परिवार की दाई अथवा दासी " रंभा " से सीखा, जिसनें उन्हें भूत-प्रेतों के भय से मुक्त होने का एकमात्र उपाय राम नाम का जाप बताया था। वे रंभा को ईश्वर भक्ति के लिए पहला गुरु मानते थे। उनके पिता दीवान थे और वे सत्य निष्ठा और आदर्श पर चलने वाले व्यक्ति थे। उनके घर पर धार्मिक व्यक्तियों का आना जाना लगा रहता था और अक्सर उनके बीच धार्मिक परिचर्चाएं हुआ करती थी। रामचरितमानस का पाठ और श्रीमदभागवत गीता का पाठ उनके यहां प्रायः हुआ करता था। इन सब ग्रंथों के पाठ के कारण और विभिन्न धार्मिक व्यक्तियों के साथ विचार-विमर्श के कारण गांधीजी के अंदर धर्म की समझ उसी समय थोड़ी-थोड़ी स्पष्ट होने लगी थी, जिसने बाद के क्रम में उनके पूरे वैचारिक पृष्ठभूमि को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जिन नैतिक सिद्धांतों, विचारों, दर्शनों को गांधी जी ने अपने जीवन में विशेष महत्व दिया और जिनका प्रचार वे समाज में करते रहे, उनकी शिक्षा मूलत: उन्होंने अपने परिवार में ही प्राप्त की थी। अतः उनके पारिवारिक एवं सामाजिक वातावरण को उनके नैतिक दर्शन की आधारशिला माना जा सकता है।।
