गांधी जी पर रामचरितमानस का प्रभाव



गांधी जी के विचारों पर रामचरितमानस का प्रभाव

गांधी जी के विचारों पर रामचरितमानस का काफी गहरा प्रभाव पड़ा हैं। गीता के अतिरिक्त गांधी जी के उपर जिस भारतीय ग्रंथ ने सबसे अधिक प्रभाव डाला, उसमें रामचरितमानस का स्थान सर्वोपरि हैं। उन्होंने रामचरितमानस की शिक्षा को अत्यधिक महत्वपूर्ण बतलाया और स्पष्ट किया कि व्यक्ति के जीवन की समस्याओं के समाधान में रामायण या रामचरितमानस में जितने सात्विक सांत्वना के तत्व हैं, उतना किसी अन्य ग्रंथ में नहीं मिलता हैं। उन्होंने लिखा हैं कि मैं गीता और तुलसी की रामचरितमानस के अध्ययन से सर्वाधिक सांत्वना और संतोष अनुभव करता हूं। आगे उन्होंने लिखा " मैं स्पष्ट रूप से स्वीकार करता हूं कि कुरान, बाइबल या विश्व के अन्य धर्म ग्रंथ जिसका मैं हृदय से आदर करता हूं, मुझे कृष्ण के गीता और तुलसी के रामायण की तरह प्रभावित नहीं कर पाती है। " यह सत्य है कि महात्मा गांधी का व्यवहारिक राजनीतिक जीवन और राजनीतिक नैतिकता तुलसी के रामचरितमानस से प्रभावित रहा है।


 वे अपने आपको एक हिंदू और एक धार्मिक व्यक्ति कहते थे। उनका संपूर्ण जीवन गीता के उपदेशों से प्रभावित था। उनके जीवन का आदर्श पुरुष, गीता का निष्काम कर्म योगी था, जो आत्मिक रूप से न केवल श्रेष्ठ था बल्कि मानवता की सीढ़ी पर काफी ऊपर उठ चुका था। गांधी ने निष्काम कर्मयोगी को अपने जीवन का आदर्श पुरुष स्वीकार किया है, परंतु यह भी एक सच्चाई है कि गांधी को किसी भी धर्म, संप्रदाय, परंपरा और रीति-रिवाजों के बंधन में बांधकर नहीं रखा जा सकता हैं। वह तो धर्म, संप्रदाय, संस्कार और धार्मिक व्यवहारों की सीमाओं से ऊपर थे। भगवान बुद्ध की तरह वर्ग और वर्ण की विचारधारा से मुक्त थे और अहिंसा को महत्तम धर्म या विश्व बंधुत्व के धर्म में विश्वास करते थे। धार्मिक रूप से उनकी निष्ठा तो उन तत्वों के प्रति थी जो तत्व सभी ग्रंथों, विचार वर्गों और पंथों के समान मौलिक तत्व रहे हैं, यही कारण है कि गांधी ने सभी धर्मों में अपनी आस्था प्रकट की है और सभी धर्मों के मौलिक तत्वों में समानता का दर्शन किया।


राजनीति और धर्म के बीच संबंधों की स्थापना या राजनीति के आध्यात्मीकरण, गांधी के विचारों के महत्वपूर्ण देन है। गांधी ने स्पष्ट रूप से अपने आप को एक धार्मिक व्यक्ति बताया और कहा कि मैं आंतरिक रूप से एक धार्मिक व्यक्ति हूं और मेरे जीवन की धार्मिक या बाह्य जीवन राजनीतिक है। अतः गांधी ने अपने आंतरिक जीवन को धार्मिक और बाह्य जीवन के राजनीतिक पहलू के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है, गांधी ने कभी भी पश्चिम विचारकों की तरह राजनीति और धर्म की पृथकता का पृष्ठपोषण नहीं किया है, बल्कि व्यक्ति के नैतिक धार्मिक पहलुओं या उसके आध्यात्मिक जीवन और राजनीतिक जीवन के बीच के तालमेल की स्थापना का मार्ग दर्शन किया है। 


गांधी ने अपने धार्मिक व्यक्तित्व और राजनीतिक पहलू के बीच तालमेल की स्थापना के लिए जिस धर्म की व्याख्या की है, वह धर्म संप्रदायिक रुप जैसे-हिंदू धर्म, इस्लाम धर्म, क्रिश्चन या ईसाई धर्म नहीं है। उस धर्म का समबन्ध किसी मंदिर मस्जिद या गुरुद्वारे से भी नहीं है, बल्कि वह धर्म का एक विशिष्ट और सूक्ष्म रूप है, जिसे गांधी ने नैतिक धर्म के रूप में स्वीकार किया है। गांधी ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि " राजनीति को धर्म से अलग नहीं रखा जा सकता, क्योंकि धर्म हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त है। " परंतु गांधी जिस धर्म की बात करते हैं वह किसी संप्रदाय विशेष का धर्म ना होकर एक विशिष्ट धर्म है, जिसका अर्थ है- " सृष्टि के व्यवस्थित नैतिक शासन के प्रति आस्था। यह आस्था अदृश्य है और किसी हिंदू, मुस्लिम या ईसाई धर्म को दबाता नहीं बल्कि यह तो उनके बीच सुंदर समन्वय की स्थापना करता है और उन्हें यथार्थ रूप प्रदान करता है। 


गांधी की विचारधारा रामचरितमानस के धार्मिक और राजनीतिक पहलुओं के समन्वय से प्रभावित है। गांधी इस धर्म को शाश्वत मानते हैं, जो हर अवस्था में और हर जगह व्याप्त है। यह शक्ति अनंत है जिसे हम ईश्वर मानते हैं। ईश्वर एक जीवन शक्ति है और हमारा जीवन उस शक्ति का अंश है। वह शक्ति हममें निहित है। जो व्यक्ति उस अनंत शक्ति के अस्तित्व में विश्वास करता है वह नैतिक रूप से सुदृढ़ होता चला जाता है। जो उस शक्ति के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता है वह एक आधार शक्ति के प्रयोग से अपने आप वंचित हो जाता है। गांधी ने रामचरितमानस के राम को इस रूप में स्वीकार किया है।                      


गांधी ने रामचरितमानस के राजा दशरथ के राम को तुलसी द्वारा बताएं दशरथ के पुत्र राम के रूप में स्वीकार नहीं किया है। गांधी ने राम को जिस रूप में स्वीकार किया वह गांधी की प्रार्थनाओं का राम है, जो अजन्मा है, सर्वोच्च है, नैतिक सत्य है। वह ऐसा सर्वोच्च है जिसकी मैं पूजा करता हूं। गांधी उस राम को अपनी आस्था के रूप में स्वीकार किया है। उन्होंने अपने आप से पूछा है वह मेरी प्रार्थना का राम जिसकी मैं पूजा करता हूँ, कौन है? उन्होंने इसका उत्तर दिया है कि वह सत्य है, शाश्वत है और सत्य ही ईश्वर है। गांधी ने स्पष्ट लिखा है कि ईश्वर सत्य है, ऐसा कहने से अधिक उचित है कि सत्य ही ईश्वर है। गांधी कहते हैं, ऐसा कहने में उनका अभिप्राय यह बताना है कि सत्य ईश्वर तो है ही उसे भी कुछ अधिक है। इसलिए गांधी ने सत्य औऱ ईश्वर में बहुत अंतर नहीं किया है, और रामचरितमानस का राम ऐसा ही एक पूर्ण व्यक्तित्व है, एक सम्पूर्णता का प्रतीक है,  शाश्वत है, अजन्मा है, सर्वव्यापक है, अदृश्य और सर्वोच्च सत्ता के प्रति सत्य है। गांधी ने  इसे ही ईश्वर की संज्ञा दी है और बतलाया है कि ईश्वर संपूर्णता का प्रतीक है।


 मनुष्य अपूर्ण है, वह अपनी पूर्णता की प्राप्ति के लिए छटपटाता है, जिसका अर्थ है कि मनुष्य सत्य प्राप्ति के लिए छटपटाता रहता हैं। मनुष्य जीवन का अर्थ ईश्वर की प्राप्ति या ईश्वर की खोज है। वैसे ईश्वर जो सत्य है ,शाश्वत और सनातन है। अतः सत्य ही मनुष्य की मंजिल है और उसका गंतव्य है। अतः गांधी ने प्रकृति के शाश्वत सार्वभौमिक नियम सत्य और राम में कोई अंतर नहीं किया है। उनकी प्रार्थना का राम ही सत्य और ईश्वर है। रामायण की विचारधारा ने गांधी को एक समन्वयवादी दृष्टिकोण प्रदान किया है, तथा उन्हें निराकार और साकार स्वरूप के बीच सुंदर समन्वय की स्थापना की प्रेरणा दी है।।


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