◆ गांधी पर (पाश्चात्य दार्शनिक) हेनरी डेविड थोरो का प्रभाव
गांधी जी के दर्शन पर जिन पाश्चात्य चिंतकों का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा हैं, उनमें " हेनरी डेविड थोरो " भी एक हैं। थोरो अमेरिका के प्रसिद्ध अराजकतावादी विचारक थे। गांधी जी के विचारों पर हेनरी डेविड थोरो के कार्यों और विचारों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता हैं। थोरो ने ही " (सिविल डिसऑबेडिएंस (सविनय कानून भंग) " शब्द का प्रयोग सबसे पहले सन 1849 ई० में अपने एक भाषण में किया था परंतु गांधी जी ने सविनय कानून भंग की अपनी कल्पना थोरों के लेखों से नहीं ली। उन्हें सविनय कानून भंग पर लिखा थोरो का निबंध मिला, उससे पूर्व दक्षिण अफ्रीका में सत्ता का प्रतिरोध गांधी जी के नेतृत्व में काफी आगे बढ़ चुका था। उस समय गांधी जी द्वारा गिरमिटिया मजदूरों के समर्थन में दक्षिण अफ्रीका के ब्रिटिश शासन के विरुद्ध चलाए जा रहे आंदोलन " पैसिव रेजिस्टेंस " के नाम से जाना जाता था। अपने अंग्रेजी पाठकों को सत्याग्रह की लड़ाई का रहस्य समझाने के लिए गांधी जी ने थोरो के शब्द प्रयोग किए और उसके बाद थोरो का यह शब्द सिविल डिसऑबेडिएंस (सविनय कानून भंग) गांधी के सत्याग्रह के लिए उपयोग होने लगा। परंतु गांधी ने देखा कि सिविल डिसऑबेडिएंस शब्द भी इस लड़ाई का पूरा अर्थ नहीं दे पा रहा है। इसलिए गांधी जी ने सिविल रेसिस्टेंस (सविनय प्रतिरोध) शब्द को अपना लिया। जहां तक थोरो के सिद्धांत की बात है उनके सिद्धांत के अनुसार जिन मनुष्य और संस्थाओं से भलाई हो उनसे अधिक से अधिक सहयोग और जिनसे बुराई को प्रोत्साहन मिले उनसे अधिक से अधिक असहयोग करना चाहिए। थोरो और गांधी के विचारों समानताओं के बाबजूद दोनों में भिन्नताये भी मौजूद है। थोरो ने दासता को हटाने के आंदोलन में अमेरिकन सरकार के विरुद्ध निष्क्रिय प्रतिरोध ही नहीं सक्रिय हिंसक प्रतिरोध भी न्यायोचित बताया, जबकि गांधी जी सक्रिय हिंसक प्रतिरोध का समर्थन नही करते हैं। गांधी का विश्वास था कि मनुष्य की प्राकृतिक प्रवृत्तियां भलाई की ओर है और प्रत्येक परिस्थिति में मनुष्य को अपनी अंतरात्मा के फैसलों पर चलना चाहिए। थोरो का आदर्श समाज " राज-रहित " समाज है ।गांधीजी के नेतृत्व में अफ्रीका में चलाए जा रहे सत्याग्रह आंदोलन जिस उद्देश्य और जिस अहिंसात्मक रास्तों को अपनाकर चलाया जा रहा था, उस आंदोलन की सार्थकता सिद्ध करने में थोरो के सिविल डिसऑबेडिएंस के सिद्धांत का महत्वपूर्ण योगदान रहा। भारत लौटने के बाद गांधी जी ने सविनय कानून भंग के सिद्धांत के आधार पर 1930 में नमक सत्याग्रह के माध्यम से सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया। इस तरह देखते हैं, गांधी की सत्याग्रह आंदोलन में थोरो के सिविल डिसॉबीडीएन्स सिद्धांत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
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