चंपारण सत्याग्रह



चंपारण सत्याग्रह– गांधी युग का आरंभ


◆ पृष्ठभूमि


प्लासी के युद्ध (1757) में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की  विजय ने विदेशी उत्पीड़कों द्वारा भारत के आर्थिक शोषण की लगभग दो शताब्दियों के प्रारंभ को चिह्नित किया। खदानों और बागानों में काम करने वाले गरीब किसान, कारीगर और मजदूर इससे सर्वाधिक प्रभावित हुए। बागानों में, नील के बागान थे, जहाँ इस प्रकार के उत्पीड़न का इतिहास सर्वाधिक विस्तृत था।


● किसानों का शोषण


ब्रिटिश बागान मालिकों ने नील के बागानों का विस्तार बिहार तक किया, जहां उन्होंने जमींदारी व्यवस्था का उपयोग वहां के किसान-काश्तकारों का शोषण करने के लिए किया। जिन जगहों पर वे जमींदारों को खरीदने में विफल रहे, उन्होंने स्थानीय जमींदारों से पट्टे प्राप्त किए, जिसके कारण उन्होंने, किसानों पर अब ठेकेदारों के समान अधिकारों का प्रयोग किया गया। बिहार के चंपारण जिले में, अधिकांश यूरोपीय बागान मालिकों ने बेतिया की बड़ी जमींदारी से पूरे गांव के लिए ठेका या पट्टे प्राप्त किए।


वस्त्र आयात में वृद्धि के कारण नील की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, बागान मालिकों ने शोषणकारी तीनकठिया प्रणाली लागू की, जिसके अंतर्गत किसानों को अपनी किराए की भूमि के  सर्वाधिक अच्छे हिस्से पर नील उगाने के लिए मजबूर किया गया।


एक संकट तब उत्पन्न हुआ, जब 1880 के दशक के अंत में जर्मनी ने कृत्रिम रंजक (रंग) विकसित कर लिया, जिसने भारतीय किसानों द्वारा की जाने वाली प्राकृतिक नील रंग की खेती को कड़ी प्रतिस्पर्धा दी। इस प्रकार, भारतीय नील की मांग और कीमतों में गिरावट आई। नील की कीमतों में गिरावट के कारण होने वाले मुनाफे के नुकसान की भरपाई करने के लिए, बागान मालिकों ने बढ़े हुए लगान के रूप में किसानों पर बोझ डाल दिया, इस प्रकार जमींदार के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग किया।


बागान मालिकों ने बेगार की पारंपरिक जमींदारी प्रथा का भी  उपयोग किया, बलपूर्वक अवैतनिक या अपर्याप्त मजदूरी  का भुगतान किया गया, किसानों के मवेशियों, हल और गाड़ियों को जब्त कर लिया गया और इसके परिणामस्वरूप उन्हें अपने आर्थिक हितों की पूर्ति  के लिए उत्पीड़ित किया गया।

इस प्रकार, बागान मालिकों ने गरीब किसानों पर बोझ डालकर अपने नुकसान की भरपाई करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।








 ◆ गांधी जी की भूमिका


दक्षिण अफ्रीका में आंदोलनात्मक पद्धतियों में 21 वर्षों से भी अधिक का अनुभव प्राप्त करने के पश्चात, गांधीजी 9 जनवरी, 1915 को भारत लौट आए। 1916 में, कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के दौरान, गांधीजी ने चंपारण के किसानों के प्रतिनिधि राजकुमार शुक्ल से भेंट की, जिन्होंने उनसे चंपारण आने और वहां नील रैयतों के कष्टों को स्वयं देखने का अनुरोध किया।


गांधीजी चंपारण जाने के लिए सहमत हो गए थे। अप्रैल, 1917 में, गांधीजी चंपारण पहुंचे और राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिन्हा, आचार्य कृपलानी और ब्रजकिशोर प्रसाद जैसे प्रख्यात स्थानीय नेताओं का एक दल बनाया। 


उनकी यात्रा का एकमात्र उद्देश्य नील रैयतों की खराब स्थिति का अध्ययन करना था। उत्पीड़क बागान मालिकों के विरुद्ध किसानों में जागृति उत्पन्न करने के लिए, उन्होंने 1917-18 में चंपारण किसान आंदोलन प्रारंभ किया। यह भारत में गांधीजी का प्रथम सत्याग्रह था।

 

● सविनय अवज्ञा


जैसे ही गांधीजी चंपारण पहुंचे, जिलाधिकारी ने उन्हें वहां न रुकने और पहली उपलब्ध ट्रेन से जगह छोड़ने का नोटिस दिया। हालांकि, गांधीजी ने झुकने से इनकार कर दिया।

कानून के उल्लंघन का आरोप लगाए जाने और चंपारण छोड़ने के लिए कहे जाने के बावजूद, गांधीजी ने जाने से इनकार कर दिया।


18 अप्रैल, 1917 को जब गांधीजी मोतिहारी न्यायालय में प्रस्तुत हुए, तो उनके साथ लगभग 2000 से भी अधिक स्थानीय लोग थे। बिहार के तत्कालीन उप राज्यपाल ने गांधीजी के विरुद्ध मामला वापस लेने का आदेश दिया और जिलाधिकारी ने  गांधीजी को पत्र लिखकर कहा कि वह जांच करने के लिए स्वतंत्र हैं।


उन्होंने अपनी टीम के साथ किसानों के साथ बातचीत करना और उनकी शिकायतों को दर्ज करना प्रारंभ किया। यह चंपारण सत्याग्रह का रूप और सार था।


◆ परिणाम


ई.ए. गैट, बिहार और उड़ीसा के उपराज्यपाल एवं मुख्य सचिव एच. मैकफर्सन, द्वारा 5 जून को रांची में गांधीजी के साथ एक बैठक आयोजित की गई थी। यहां एक समझौता हो गया। एक जांच समिति का गठन किया गया, जिसमें एक सदस्य के रूप में गांधीजी के साथ-साथ बागान मालिकों और जमींदारों के प्रतिनिधि और तीन ब्रिटिश अधिकारी सम्मिलित थे। गांधीजी ने अब तक किसानों की शिकायतों के संबंध में जितने भी साक्ष्य एकत्रित किए थे, वे सभी इसके समक्ष रखे गए थे।


यदि समिति की सिफारिशों को प्रतिष्ठित किया जाता है तो गांधीजी किसानों की शिकायतों की आगे की किसी भी जांच को समाप्त करने के लिए सहमत हो गए। समिति की सिफारिश पर, कानून में कुछ परिवर्तन किए गए एवं चंपारण कृषि अधिनियम, 1918 अस्तित्व में आया।

 

चंपारण में सफलता ने गांधीजी को स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक सशक्त नेतृत्व के रूप में स्थापित किया। इस आंदोलन के दौरान ही उन्हें प्रथम बार " बापू और महात्मा " कहा गया। शोषणकारी तीन-कठिया व्यवस्था को समाप्त करने का श्रेय उन्हें जाता है।


● जन-आंदोलन युग का आरंभ 


चंपारण में उत्पीड़ित किसानों को कुशलता से संगठित करने की गांधीजी की क्षमता ने अन्यथा अनिच्छुक कांग्रेस को ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध एक जन आंदोलन प्रारंभ करने के लिए सहमत कर लिया। इस प्रकार, चंपारण आंदोलन ने जन आंदोलन युग के आरंभ को चिह्नित किया क्योंकि अब से जनता राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बन गई।


दक्षिण अफ्रीका में अपने अनुभव के आधार पर और जनता के नेता के रूप में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करते हुए, पहले चंपारण सत्याग्रह के दौरान और बाद में अहमदाबाद और खेड़ा सत्याग्रह में, गांधीजी ने जनता के मध्य अपने पैर जमाए। वह अब जनता की  शक्तियों और दुर्बलताओं को बेहतर रूप में समझते थे।


यद्यपि, " सत्याग्रह " शब्द का  प्रथम बार प्रयोग " रॉलेट एक्ट " के विरुद्ध किया गया था अपितु गांधीजी ने अपने चंपारण अभियान के दौरान स्वतंत्रता संग्राम के लिए सत्याग्रह आंदोलन के बीज बोए थे। चंपारण सत्याग्रह के माध्यम से, गांधीजी ने लोगों को दिखाया कि हिंसा के प्रयोग के बिना सर्वाधिक शक्तिशाली उत्पीड़क को भी उखाड़ फेंका जा सकता है।।

 



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