◆ भूमिका :-
" दी क्रिटिक " के उपसम्पादक " मि. पोलक " ने गाँधी को रस्किन की पुस्तक " अन्टू द लास्ट " दिया। इस पुस्तक ने गाँधी को प्रेरित किया। वे स्वतः पत्र-प्रकाशन की ओर लग गए। नेटाल-इंडियन कांग्रेस को मुखरित करने के माध्यम के रूप में " इंडियन ओपिनियन " की अवधारणा उनके मन में बैठ गई।
4 जून, 1903 ई. को 'इंडियन ओपिनियन' का प्रथमांक अंग्रेजी, हिन्दी, गुजराती तथा तमिल में निकला। शनिवार को निकलने वाला यह पत्र 6 कालम में प्रकाशित होता था। जिसके चार पृष्ठ अंग्रेजी, दो पृष्ठ गुजराती, दो पृष्ठ हिन्दी तथा दो पृष्ठ तमिल के थे। सम्पादकीय एवं अन्य महत्वपूर्ण स्तम्भ गाँधी ही तैयार करते थे।
'इंडियन ओपिनियन' के प्रथम अंक में गाँधी ने लिखा― " भारतीय लोगों पर हुए अत्याचार को प्रदर्शित करना तथा विचारों का प्रसार करना इसका पहला उद्देश्य है, जिससे लोगों में सत्यनिष्ठा जागृत हो सके" । मालूम हो कि गाँधी के लिए 'इंडियन ओपिनियन' का प्रकाशन पवित्र मिशन की तरह था। उन्होंने इसमें न केवल अपना कीमती समय और शारीरिक-मानसिक श्रम लगाया था वरन् इसमें अपनी गाढ़ी कमाई भी झोंक दी थी। इसलिए हिन्दुस्तानी समाज की प्रतिष्ठा के लिए वे किसी भी कीमत पर 'इंडियन ओपिनियन' को चालू रखना चाहते थे।
वे इसमें पैसे उड़ेलते गए। आखिर ऐसा भी समय आया, जब उनकी पूरी बचत उसी पर खर्च हो जाती थी। एक दौर में तो उन्हें हर महीने 75 पौण्ड भेजने पड़ते थे। 'इंडियन ओपिनियन' के प्रकाशन के प्रथम वर्ष में तो गाँधी को इसपर अपनी जेब से 2 हजार पौंड खर्च करने पड़े। खर्चों के बढ़ने के बावजूद गाँधी ने भारतीयों को दक्षिण अफ्रीका में सामाजिक और राजनैतिक अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष जारी रखते हुए घाटा सह कर भी इस पत्र को चलाया। बाद में गाँधी ने 'इंडियन ओपिनियन' को चलाने के लिए और 'फीनिक्स आश्रम' को स्थापित करने के लिए दक्षिण अफ्रीका में अपने आखिरी प्रवास के दौरान की पूरी कमाई हजार पाउंड भी इसमें लगा दी थी।
◆ इंडियन ओपिनियन का उद्देश्य :-
'इंडियन ओपिनियन' के भविष्य को लेकर गाँधी की अध्यक्षता में एक बैठक 23 अप्रैल, 1906 को डर्बन स्थित " उमर हाजी अहमद झवेरी " के घर पर हुई थी। गाँधी ने इस बैठक में 'इंडियन ओपिनियन' के संबंध में जो लक्ष्य तथा उद्देश्य बताए, वे इसी समाचार पत्र के 28 अप्रैल, 1906 के अंक में प्रकाशित हुए। गाँधी ने 'इंडियन ओपिनियन' की घाटे वाली आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डाला और घोर वित्तीय संकट में भी प्रेस के एक भी कर्मचारी के न रहने तक अंग्रेजी संस्करण को निकालते रहने का व्रत लिया। गाँधी ने समाचार पत्रों के उद्देश्यों को जिस टिप्पणी में स्पष्ट किया। वे निम्न हैं :-
- हिन्दुस्तानियों की स्थिति को शासनकर्त्ताओं एवं गोरों के सामने तथा इंगलैंड, दक्षिण अफ्रीका तथा भारत में जाहिर करना।
- भारतीयों के दोषों को उन्हें बताना तथा उसे दूर करने के लिए प्रेरित करना।
- जनमानस में आवश्यक रूचि अर्थात् भावनाओं को जागृत करना।
- हिन्दुस्तानियों में हिन्दू-मुसलमान के बीच का मतभेद को तोड़ना तथा गुजराती तमिल-बंगाली आदि की क्षेत्रीय खाइयों को पाटकर एकता स्थापित करना।
- आवश्यक विचारों को प्रजा में दृढ़ करना तथा प्रजा को शिक्षित करना।
उन्होंने 24 दिसंबर, 1904 को 'अपनी बात' शीर्षक से "इंडियन ओपिनियन' में लिखा― 'इंडियन ओपिनियन' का ध्येय सम्राट एडवर्ड की यूरोपीय और भारतीय प्रजा में निकटतर संबंध स्थापित करना है। उसका ध्येय लोकमत को शिक्षित करना, गलतफहमी के कारणों को दूर करना, भारतीय के सामने उनके दोष उजागर करना और उन्हें, जब वे अपने अधिकारों की प्राप्ति का आग्रह कर रहे हैं तब उनको भी कर्तव्य-पथ दिखलाना हैं।"
गाँधी के लिए 'इंडियन ओपिनियन' संयम की तालीम सिद्ध हुआ। पाठकों के लिए वह उनके विचारों को जानने का माध्यम बन गया था। 'इंडियन ओपिनियन' के पहले महीने के कामकाज से ही गाँधी जी इस परिणाम पर पहुँच गये थे कि समाचार पत्र सेवाभाव से ही चलाने चाहिए। गाँधीजी ने लिखा है― “समाचार पत्र एक जबरदस्त शक्ति है, किन्तु जिस प्रकार निरंकुश पानी का प्रवाह गाँव के गाँव डुबो देता है और फसल को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार कलम का निरंकुश प्रवाह भी नाश की सृष्टि करता है। यदि ऐसा अंकुश बाहर से आता है, तो वह निरंकुशता से भी अधिक विषैला सिद्ध होता है। अंकुश तो अंदर का ही लाभदायक हो सकता है।"
'इंडियन ओपिनियन' ने 'सत्याग्रह' शब्दों की खोज की। निष्क्रिय प्रतिरोध (Passive Resistance) से सत्याग्रह का समन्वय उचित नहीं बैठता था। " मगनलाल गांधी " ने " सदाग्रह " ( शुभ के लिए आग्रह) शब्द सुझाया। गाँधी ने " सत्याग्रह " शब्द दिया, जिसमें 'सत्य'- प्रेम का तथा 'आग्रह'- शक्ति का प्रतीक है। प्रेम की शक्ति से परिवर्तन निष्क्रिय प्रतिरोध से भिन्न सक्रिय विरोध का अहिंसक प्रतिकार है। स्वयं कष्ट सहकर विरोधी को अपने आत्मबल का आभास करा देना ही सत्याग्रह का दर्शन है।
'इंडियन ओपिनियन' वस्तुतः अफ्रीकी संघर्ष का शंखनाद था। रचनात्मक सत्याग्रह की भूमिका में गाँधी की पत्रकारिता " Printers Devil " के नाम से जानी गयी। 'इंडियन ओपिनियन की भूमिका का ही प्रभाव था कि 'यंग इंडिया, 'नवजीवन', 'हरिजन' जैसे पत्र प्रतिफलित हुए। 'इंडियन ओपिनियन' गाँधी की अहिंसात्मक पत्रकारिता की मशाल है।
महात्मा गाँधी ने 'इंडियन ओपिनियन' के बारे में लिखा है―" जब तक 'इंडियन ओपिनियन' मेरे अधीन था, उसमें किये गये परिवर्तन मेरे जीवन में हुए परिवर्तनों के द्योतक थे। जिस तरह आज 'यंग इंडिया' और 'नव जीवन' मेरे जीवन में कुछ अंशों के निचोड़ हैं, उसी तरह 'इंडियन ओपिनियन' था। उसमें मैं प्रति सप्ताह अपनी आत्मा उंडेलता था और जिसे मैं सत्याग्रह के रूप में पहचानता था, उसे समझाने का प्रयत्न करता था।"
गाँधीजी ने 'इंडियन ओपिनियन' में खूब लिखा और इसमें हमेशा पत्रकारिता के स्वस्थ मापदंडों का ख्याल रखा। गाँधीजी ने लिखा है― " जेल की अवधि को छोड़कर दस वर्षों का अर्थात् सन् 1914 तक 'इंडियन ओपिनियन' का शायद ही कोई अंक ऐसा होगा, जिसमें मैंने कुछ न लिखा हो। इसमें मैंने एक भी शब्द बिना विचारे, बिना तौले लिखा हो, किसी को केवल खुश करने के लिए लिखा हो अथवा जान-बूझकर अतिश्योक्ति की हो, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता। मेरे लिये यह अखबार संयम की तालीम सिद्ध हुआ था। मित्रों के लिए यह मेरे विचारों को जानने का माध्यम बन गया था।"
― गांधीजी ने 'इंडियन ओपिनियन' के महत्व को स्प्ष्ट करते हुए लिखा― " मेरा मानना है कि पूरी तरह आंतरिक शक्ति पर आधारित कोई भी संघर्ष अखबार के बिना नहीं चलाया जा सकता। यह भी मेरा अनुभव है कि अफ्रीका में घट रही घटनाओं के बारे में हम किसी और तरीके से न तो स्थानीय भारतीय समुदाय को शिक्षित कर सकते हैं और न ही पूरी दुनिया के भारतीयों को उनसे अवगत करा सकते थे, जिस सरलता और सफलता के साथ हमने 'इंडियन ओपिनियन' द्वारा किया। इसलिए वह हमारे संघर्ष में निश्चित तौर पर एक सार्थक और सशक्त हथियार था ।"
राजनैतिक संघर्ष में 'इंडियन ओपिनियन' की आंदोलनकारी भूमिका थी। रंगभेद की समस्या, भारतीय कला-संस्कृति, असमानता जैसी बातों पर इसका ध्यान था। गाँधीजी कहते थे― " पत्रकार का दायित्व इतिहासकार की तरह ही सबसे पहले सत्य का पता लगाना है और अपने पाठकों के सामने वह चीज नहीं परोसना है, जो सरकार उसे बताना चाहती है, बल्कि उसे वह सत्य पेश करना है, जो कोई छुपाना या दबाना चाहता हैं और जिस सत्य को वह स्वयं प्राप्त कर सके।"
◆ निष्कर्ष :-
" इंडियन ओपिनियन " का लक्ष्य जनमत को शिक्षित करना, यूरोपीय और भारतीय नागरिकों के बीच व्याप्त गलतफहमियों के कारणों को दूर करना तथा भारतीयों में उनकी गलतियों के बारे में चेतना जगाना था। गाँधीजी ने इस पत्र के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों को आत्मानुशासन, स्वच्छता तथा अच्छी नागरिकता के बारे में शिक्षित करने तथा उन्हें सत्याग्रह हेतु तैयार करने का प्रयास किया।
'द इंडियन ओपिनियन' में भारतीयों से संबंधित मानव रूचि के समाचार, इंग्लैंड के समाचार, खेल समाचार, शोक समाचार और विश्व के महान स्त्री-पुरुषों के जीवनवृत्त होते थे। इस पत्र ने भारतीयों को सत्याग्रह आंदोलन के बारे में शिक्षित किया। उन्होंने पाठकों को लियो टॉलस्टाय, रस्किन, थोरो, इमर्सन, अब्राहम लिंकन, मैजिनी, एलिजाबेथ फ्राई, फ्लोरेंस नाइटिंगेल, टी महादेव राव.. इत्यादि की जीवनियों एवं रचनाओं के माध्यम से प्रेरणा दी।
इस पत्र ने शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य के सदस्य के रूप में भारतीयों की जिम्मेदारियों को भी इंगित किया। यह विभिन्न भाषाएं बोलने वाले भारतीयों के लाभ हेत्तु चार भाषाओं अंग्रेजी, गुजराती, तमिल व हिन्दी में प्रकाशित किया जाता था।।


