मानव अधिकार/मानवाधिकार और NHRC
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद 1948 में 48 देशों के समूह ने समूची मानव जाति के मूलभूत अधिकारों की व्याख्या करते हुए एक चार्टर पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें माना गया था कि व्यक्ति के मानवाधिकारों की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए। भारत ने भी इस पर सहमति जताते हुए संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर किए। हालांकि देश में मानवाधिकारों से जुड़ी एक स्वतंत्र संस्था बनाने में 45 वर्ष लग गए और तब कहीं जाकर 1993 में एनएचआरसी (NHRC) अर्थात राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अस्तित्व में आया, जो समय-समय पर मानवाधिकारों के हनन के संदर्भ में केंद्र तथा राज्यों को अपनी अनुशंसाएं भेजता है।
वर्तमान समय में देश में जिस तरह का माहौल आए दिन देखने को मिलता है, ऐसे में मानवाधिकार और इससे जुड़े आयामों पर चर्चा महत्वपूर्ण हो जाती है। देशभर में मॉब लिंचिंग की घटनाएं, बिहार के मुजफ्फरपुर और उसके तुरंत बाद उत्तर प्रदेश के देवरिया में शेल्टर होम की बच्चियों के साथ हुए वीभत्स कृत्य देश में मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाते दिखते हैं।
कई विवादास्पद घटनाओं जैसे ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उत्पन्न दंगे, शाहबानो मामले के बाद मौलानाओं में भड़की विरोध की चिंगारी, बाबरी मस्जिद ध्वस्त होने के बाद देशभर में हुए दंगे, गुजरात में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगे, कश्मीर में आए दिन हो रहे दंगे इत्यादि के समय में भी देश के नागरिकों के मानवाधिकारों का हनन किसी से छिपा नहीं है।
हालांकि ऐसे कई मसले हमें देखने को मिल जाते हैं, जब मानवाधिकारों के उल्लंघन का गंभीर मुद्दा उठाते हुए एनएचआरसी (NHRC) अपने कर्तव्यों का बखूबी पालन करता है, लेकिन फिर भी एनएचआरसी (NHRC) अन्य कई मामलों पर अपनी अनुशंसा देने में खुद को लाचार पा रहा है, तो क्या इसे एक निष्प्रभावी संस्था मान लिया जाए..?? लिहाजा सवाल उठता है कि इस लाचारी के क्या कारण है..?? और क्या इस लाचारी का कोई समाधान है..?? इस लेख के माध्यम से हम इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे…
एक वाक्य में कहें तो मानवाधिकार हर व्यक्ति का नैसर्गिक या प्राकृतिक अधिकार है। इसके दायरे में जीवन, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार आता है। इसके अलावा गरिमामय जीवन जीने का अधिकार, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार भी इसमें शामिल है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए मानवाधिकार संबंधी घोषणा-पत्र में भी कहा गया था कि मानव के बुनियादी अधिकार किसी भी जाति, धर्म, लिंग, समुदाय, भाषा, समाज आदि से इतर होते हैं। रही बात मौलिक अधिकारों की तो यह देश के संविधान में उल्लिखित अधिकार हैं। यह अधिकार देश के नागरिकों को और किन्हीं परिस्थितियों में देश में निवास कर रहे सभी लोगों को प्राप्त होते हैं। यहां पर एक बात और स्पष्ट कर देना उचित है कि मौलिक अधिकार के कुछ तत्व मानवाधिकार के अंतर्गत भी आते हैं जैसे- "जीवन और व्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार "।
◆ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC):-
यह राष्ट्रीय मानवाधिकारों के वैश्विक गठबंधन का हिस्सा है। साथ ही यह राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के एशिया पेसिफिक फोरम का संस्थापक सदस्य भी है।
एनएचआरसी (NHRC) को मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन का अधिकार प्राप्त है। मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा-12(ज) में यह कल्पना भी की गई है कि NHRC समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानवाधिकार साक्षरता का प्रसार करेगा और प्रकाशनों, मीडिया, सेमिनारों तथा अन्य उपलब्ध साधनों के जरिए इन अधिकारों का संरक्षण करने के लिए उपलब्ध सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाएगा। इस आयोग ने देश में आम नागरिकों, बच्चों, महिलाओं, वृद्धजनों के मानवाधिकारों के समुदाय के लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए समय-समय पर अपनी सिफारिशें सरकार तक पहुंचाई है और सरकार ने कई सिफारिशों पर अमल करते हुए संविधान में उपयुक्त संशोधन भी किए हैं।
शिकायतें प्राप्त करना तथा लोक सेवकों द्वारा हुई भूल-चूक अथवा लापरवाही से किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच पड़ताल शुरू करना इसमें शामिल है ताकि मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोका जा सके। एक आंकड़े के अनुसार अप्रैल 2017 से लेकर दिसंबर 2017 की अवधि के दौरान लगभग 61,532 मामले विचार हेतु दर्ज किए गए और आयोग ने लगभग 66,532 मामलों का निपटारा किया। इस अवधि के दौरान आयोग द्वारा नागरिक और राजनीतिक अधिकारों, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की कथित उल्लंघन के 49 मामलों की मौके पर जांच की गई।
कैदियों की जीवन दशाओं का अध्ययन करना, न्यायिक हिरासत तथा पुलिस हिरासत में हुई मृत्यु की जांच पड़ताल करना भी आयोग के कार्य क्षेत्र में शामिल है। साथ ही एनएचआरसी (NHRC) मानवाधिकार से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधियों एवं अन्य संबंधित अभिसमयों और दस्तावेजों का अध्ययन तथा उनके प्रभावी अनुपालन की सिफारिश भी करता है। भारत में मानवाधिकार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध कार्य करना भी एनएचआरसी (NHRC) के कार्यों के अंतर्गत आता है।
◆ NHRC (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) के कुछ अन्य प्रमुख कार्य:-
- समाज के विभिन्न वर्गों में मानवाधिकार से संबंधित जागरूकता बढ़ाना।
- किसी लंबित वाद के मामले में न्यायालय की सहमति से उस वाद का निपटारा करवाना।
- लोक सेवकों द्वारा किसी भी पीड़ित व्यक्ति या उसके सहायतार्थ किसी अन्य व्यक्ति के मानवाधिकारों के हनन के मामलों की शिकायत की सुनवाई करना।
- मानसिक अस्पताल अथवा किसी अन्य संस्थान में कैदी के रूप में रह रहे व्यक्ति के जीवन की स्थिति की जांच की व्यवस्था करना।
- संविधान तथा अन्य कानूनों के संदर्भ में मानवाधिकारों के संरक्षण के प्रावधानों की समीक्षा करना तथा ऐसे प्रावधानों को प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करने के लिए सिफारिश करना।
- आतंकवादी या अन्य विध्वंसक कार्य के संदर्भ में मानवाधिकार को सीमित करने की जांच करना।
- गैर सरकारी संगठनों तथा अन्य संगठनों को बढ़ावा देना, जो मानवाधिकार को प्रोत्साहित करने तथा संरक्षक देने के कार्य में शामिल हो।
― इस तरह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग हरसंभव भारत में मानवाधिकार की सुरक्षा के लिए आगे बढ़कर पहल करता है, इसके बावजूद कई दफा देखने को मिलता है कि जिस हिसाब से व्यक्ति के मानवाधिकार की रक्षा होनी चाहिए, वह नहीं हो पाती, तो क्या इसके लिए मानवाधिकार आयोग को दोषी माना जाए..?? या फिर हमारे यहां की व्यवस्था में ही कुछ खोट है..??
◆ भारत में मानवाधिकारों की स्थिति:-
देश के विशाल आकार और विविधता, विकासशीलता तथा संप्रभुता-संपन्न धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा तथा पूर्व में औपनिवेशिक राष्ट्र के रूप में इसके इतिहास के परिणामस्वरूप भारत में मानवाधिकारों की प्रस्तुति एक प्रकार से जटिल हो गई है।
भारत का संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जिसमें धर्म की स्वतंत्रता भी निहित है। इन्हीं स्वतंत्रताओं का फायदा उठाते हुए आए दिन संप्रदायिक दंगे होते रहते हैं। इससे किसी एक धर्म के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होता है बल्कि उन सभी लोगों के मानवाधिकार आहत होते हैं, जो इस घटना के शिकार होते हैं तथा जिनका घटना से कोई संबंध नहीं होता हैं, जैसे-मासूम बच्चे, गरीब पुरुष-महिलाएं, वृद्धजन इत्यादि।
दूसरी तरफ भारत के कुछ राज्यों से " अफस्पा " जैसे कानून इसलिए हटा दिए गए क्योंकि इस कानून के जरिए सैन्य बलों को दिए गए विशेष अधिकारों का दुरुपयोग होने की वारदातें सामने आने लगी। उदाहरण के तौर पर बिना वारंट किसी के घर की तलाशी लेना, किसी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार करना, यदि कोई व्यक्ति कानून तोड़ता है, अशांति फैलाता है, तो उसे प्रताड़ित करना, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करना इत्यादि खबरें अक्सर अखबारों में रहती थी, लिहाजा यहां सवाल उठता है कि आखिर क्यों आजादी के इतने वर्षों बाद भी भारत में मानवाधिकार पल-पल किसी न किसी तरह की प्रताड़ना का दंश झेल रहा है..??
ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि ऐसी कौन सी चुनौतियां हैं, जिसके कारण एनएचआरसी (NHRC) मानवाधिकारों की रक्षा करने में खुद को लाचार पा रहा है..???
◆ भारत में मानवाधिकार आयोग के सामने मौजूदा चुनौतियां:-
- केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारें आयोग की सिफारिशें मानने के लिए बाध्य नहीं है, लिहाजा मानवाधिकारों के मजबूती से प्रभावी नहीं रहने का सबसे बड़ा कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव ही हैं। यही कारण है कि हर जिले में एक मानवाधिकार न्यायालय की स्थापना का प्रावधान कागजों पर ही रह गया।
- वहीं दूसरी तरफ राज्य मानवाधिकार आयोग केंद्र से जवाब-तलब नहीं कर सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि सशस्त्र बल उनके दायरे से बाहर है। यहां तक कि राष्ट्रीय आयोग भी सशस्त्र बलों पर मानवाधिकार के हनन के आरोप लगने पर केंद्र से महज रिपोर्ट मांग सकता है, जबकि गवाहों को बुला नहीं सकता, उसकी जांच-पड़ताल, पूछ-ताछ नहीं कर सकता है।
- साथ ही आयोग के पास मुआवजा दिलाने के लिए सक्रियता तो है, लेकिन आरोपियों को पकड़ने की दिशा में जांच-पड़ताल करने का अधिकार नहीं है।
― सरल शब्दों में कहे तो आज भी राष्ट्रीय एवं राज्य मानवाधिकार आयोग के पास अत्यंत सीमित शक्तियां हैं।
- मानवाधिकार संरक्षण कानून के तहत आयोग उन शिकायतों की जांच नहीं कर सकता जो घटना होने के एक साल बाद दर्ज कराई गई हो, लिहाजा अनेक शिकायतें बिना जांच के ही रह जाती है।
- पदों का खाली पड़े रहना, संसाधनों की कमी, मानवाधिकारों के प्रति जन-जागरूकता की कमी, अत्यधिक शिकायतें प्राप्त होना और आयोग के अंदर नौकरशाही दर्रे की कार्यशैली इत्यादि इन आयोगों की समस्याएं रही है।
ये सभी कारण जाने-पहचाने है लेकिन फिर भी इन्हें कभी गंभीरता से नहीं लिया गया, लिहाजा अपने उद्देश्यों को पूरा करने में यह आयोग खुद को लाचार पाते हैं।
इस स्थिति में मानवाधिकार आयोग भी सवालों के घेरे में आ गया है। इसकी तुलना उस गाय से की जाने लगी है, जो चारा भी खाती है, जिसकी देखभाल भी होती है परंतु दूध नहीं दे सकती।
― लोगों का मानना है कि अगर मानवाधिकार आयोग आम आदमियों के लिए है, तो भारत के दूर-दराज इलाकों में रह रहे लोग, जहां अशिक्षा और गरीबी व्याप्त है, अपने मूलभूत अधिकारों के बारे में अनजान क्यों हैं..?? मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी तभी सचेत होते हैं, जब किसी क्षेत्र विशेष में कोई बहुत बड़ा हादसा जैसे- बलात्कार, फेक एनकाउंटर, जातिगत अथवा संप्रदायिक हिंसा आदि हो गया हो। इन परिस्थितियों में क्या एनएचआरसी (NHRC) या राज्य मानवाधिकार आयोगों को एक निष्प्रभावी संस्था मान लिया जाए.. क्या इसका हल सुप्रीम कोर्ट तथा इन आयोगों के पास है..??
◆ चुनौतियों से निपटने हेत्तु कुछ सुझाव/समाधान:-
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने अपनी रिपोर्ट में कुछ सिफारिश की है, जिससे कि मानवाधिकार आयोग को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके। प्रशासनिक सुधार आयोग का मानना है कि NHRC को विभिन्न सांविधिक आयोगों के समक्ष शिकायतें करने के लिए एक समान प्रारूप तैयार कर सुनिश्चित किया जाए। इसके लिए पीडितों और शिकायतकर्ताओं का विवरण ढंग से दिया जाए, जिससे विभिन्न आयोगों के बीच डाटा का तालमेल अच्छे से बैठ पाए।
- मानवाधिकार आयोग को शिकायतों का निपटारा करने के लिए उपयोगी मानदंड निर्धारित करनी चाहिए। ऐसे मुद्दों में कार्रवाई के निर्धारण तथा उसके संबंधों के लिए आयोग में नोडल अधिकारी नियुक्त किए जाएं और कार्यवाही को अधिक सफल बनाने के लिए प्रत्येक सांविधिक आयोग के अंदर एक आंतरिक पद्धति विकसित की जाए।
- केंद्र तथा राज्य सरकारों को भी गंभीर अपराधों से निपटने के लिए सक्रियता के साथ कदम उठाने चाहिए। इसके लिए सरकारें मानवाधिकार आयोग की सहायता भी ले सकती है।
- भीड़-तंत्र को लेकर भी सरकार को सख्त कानून अपनाने की जरूरत है। साथ ही सरकारों तथा मीडिया को गंभीर मसलों के साथ-साथ अपनी उदासीनता को त्यागने की दरकार है।
― स्वयं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सहित सम्बद्ध आयोगों का भी कर्तव्य होना चाहिए कि वह देश के संजीदा मसले पर अपनी मौजूदगी जताकर, उन समस्याओं का समाधान खोजने में सरकार की सहायता करें, जो उनके अधिकार क्षेत्र के अंदर नहीं आते, तभी सही मायनों में देश में मानवाधिकार की रक्षा हो पाएगी। जब सभी संस्थाएं मिल-जुलकर देश की एकता और अखंडता को बरकरार रखने में एक दूसरे का सहयोग करेंगी तभी राष्ट्र में मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हो पाएगी। जरूरत है तो सिर्फ एक नेक पहल की और सार्थक प्रयास की।।


